Thursday, November 8, 2007
Monday, October 29, 2007
Monday, October 1, 2007
Saturday, September 15, 2007
Zehal-e Miskin
The main poem in the video is written on the line which I have made bold in this famous poem of famous poet of 13th century "AMIR KHUSRO".
Zehal-e miskin makun taghaful, duraye naina banaye batiyan;
ki taab-e hijran nadaram ay jaan, na leho kaahe lagaye chhatiyan.
Shaban-e hijran daraz chun zulf wa roz-e waslat cho umr kotah;
Sakhi piya ko jo main na dekhun to kaise kaatun andheri ratiyan.
Yakayak az dil do chashm-e jadoo basad farebam baburd taskin;
Kise pari hai jo jaa sunaave piyare pi ko hamaari batiyan.
Cho sham’a sozan cho zarra hairan hamesha giryan be ishq aan meh;
Na neend naina na ang chaina na aap aaven na bhejen patiyan.
Bahaqq-e roz-e wisal-e dilbar ki daad mara ghareeb Khusrau;
Sapet man ke waraaye raakhun jo jaaye paaon piya ke khatiyan.
O sweetheart, why do you not take me to your bosom.
Long like curls in the night of separation,
short like life on the day of our union;
My dear, how will I pass the dark dungeon night
without your face before.
Suddenly, using a thousand tricks, the enchanting eyes robbed me
of my tranquil mind;
Who would care to go and report this matter to my darling?
Tossed and bewildered, like a flickering candle,
I roam about in the fire of love;
Sleepless eyes, restless body,
neither comes she, nor any message.
In honour of the day I meet my beloved
who has lured me so long, O Khusro;
I shall keep my heart suppressed,
if ever I get a chance to get to her trick
Thursday, August 23, 2007
The Winner Takes it all
Building me a fence
Building me a home
Thinking I’d be strong there
But I was a fool
Playing by the rules
The gods may throw a dice
Their minds as cold as ice
And someone way down here
Loses someone dear
The winner takes it all
The loser has to fall
It’s simple and it’s plain
Why should I complain.
But tell me does she kiss
Like I used to kiss you?
Does it feel the same
When she calls your name?
Somewhere deep inside
You must know I miss you
But what can I say
Rules must be obeyed
The judges will decide
The likes of me abide
Spectators of the show
Always staying low
The game is on again
A lover or a friend
A big thing or a small
The winner takes it all
I don’t wanna talk
If it makes you feel sad
And I understand
You’ve come to shake my hand
I apologize
If it makes you feel bad
Seeing me so tense
No self-confidence
But you see
The winner takes it all
The winner takes it all......
अफसाना मोहब्बत का है यह, न बेबुनियाद कहों इसे कोई,
जुदाई बर्दाश्त नेही होती मुझसे, फिर भी तनहाइयाँ अब मजबूरी है.
आग जब सुलगती है तो होता है रंग उसका लाल
आग जब ख़त्म होजाती है तो शोले का रंग भी रहता है लाल
ये ना समझना कि है ये कोई खुदा का कमाल
दर्द किसी का भी कम नही होता, इसलिये सभिका दिल का रंग होता है लाल...
दिल जलने के बाद भी तो है इसका रंग लाल
इसका मतलब है कि आज भी है ताज़ा ये दर्द, वही है इस दिल का हाल...
शमा को पिघलने का अरमान क्यों है,
हर बूंद को सागर कि तलाश क्यों है,
बारिश होने क बाद भी,
सावन को बरसात का इंतज़ार क्यों है...
छोटी छोटी बातों पे तकरार ना किया करो
हमारे हर मज़ाक को दिल पे मत लिया करो.
क्या पता साथ है ओर कितने din का.
इन पलों को प्यार से लिया करो
इन्तजार है हमे मौत का
ओर इन्तजार है हमे आप के जवाब का
आना दोनो ने ही है
बस देखना ये है पहले कौन आता है.
नफरत भी नही अदावत भी नही
उस शक्स को हमसे मोहबत भी नही.....
शायद हम जीं नही सकते जिसके बिना
उस शक्स को हमारी ज़रूरत भी नही॥
Sunday, August 19, 2007
Kabhie Kabhie original Poem
कभी कभी मेरे दिल में ख़याल आता है
के जिन्दगी ऐ ज़ुल्फ़ों की नर्म छाओं में
गुजरने पाती तो शादाब हो भी सकती थी
ऐ तीरगी जो मिरी ज़ीस्त का मुकाद्दर है
तेरी नज़र कि शु’आऊं में खो भी सकती थी
अजब न था के मैं बेगाना-ए-आलम हो कर
तेरी जमाल की र्नाइयों में खो रहता
तेरा गुदाज़ बदन तेरी नीम्बाज़ आंखें
इन्हीं हसीं फ़सानों में मैं हो रहता
पुकारती मुझे जब तल्खियां ज़माने की
तेरे लबों से हलावत के घूँट पी लेता
हयात चीखती फिरती बरेहना सर और मैं
घनेरी ज़ुल्फ़ों की साए में छुप की जीं लेता
मगर ये हो न सका और अब ये आलम है
कि तू नहीं तिर गम , तेरी जुस्तजू भी नहीं
गुज़र रही है कुछ इस तरह ज़िंदगी जैसे
इसे किसी के सहारे की आरजू भी नहीं
ज़माने भर के दुखों को लगा चुका हूँ गले
गुज़र रहा हूँ कुछ अनजानी रह-गुज़ारों से
मुहीब साए मेरी सिमट भरते आते हैं
हयात-ओ-मौत के पुर्हौल खार्जारों से
न कोई ज़दा, न मंज़िल, न रोशनी का सुराग
भटक रही है खयालों में ज़िंदगी मेरी
इन्ही खयालों में रह जाउंगा कभी खो कर
मैं जानता हो मेरी हम नफस मगर यूं ही
कभी कभी मेरे दिल में ख़याल आता है
Glossary:
शादाब = pleasant, agriiable
तीरगी = darkness
ज़ीस्त = life
शु’आऊं = light, rays, brightness
बेगाना-ए-आलम = stranger to the varld
जमाल = beauty
र्’अनायिओं = elegance
गुदाज़ = gentle, tender
नीम्बाज़ = half open
महव = drovned
तल्खियां = bitterness
हलावत = sviitness
हयात = life
बर्हना = nakad
मुहीब = dreadful
संत = towards
हयात-ओ-मौत = life and death
पुर्हौल = full of deceit, might
खार्जारों = a place full of thorns
जादा = road
खलाओं = darkness
हम्नाफस = companion
English Translation
Sometimes…
Sometimes the thought comes to my mind…
That life spent in the soft shadows of your tresses
Would be so joyful if it could be so; that
This sorrow, which seems to be the fate of my existence
Could have been lost in the radiance of your eyes.
It would not have been strange if I, forgetful of the world
Had remained lost in the flashes of your beauty.
Your lithe body, your half-shut, dreamy eyes—
If I had been occupied with such beautiful fantasies.
And when the bitter realities of life called me
I would have drunk the sweet nectar of your lips.
Life would be shouting and shrieking about me, and I
Would have hidden in the shadows of your thick tresses, and lived.
But alas this could not be and now such is my condition
That neither you, nor sorrow for your loss, nor longing for you exist.
My life is passing by in such a manner as if
It has not even the aspiration for anyone’s succour.
I have embraced the sorrows of the world.
I am travelling through unknown paths
Terrifying shadows are coming toward me
From the frightening planes of life and death.
I have no place, no goal, neither a ray of sunlight.
My life is being wasted in desolate wildernesses.
I will remain lost in such desolate places for ever
I know, o my soul-mate, but still, out of the blue,
Sometimes the thought comes to my mind…
Friday, August 17, 2007
Wednesday, August 15, 2007
बेचैनियाँ
After collecting all the problems (restlessness) of the world
जब कुछ ना बन सका तो मेरा दिल बना दिया.
When nothing could be made he made my heart
Credit for the Ghazal below goes to "Priya"
with full respect to her and her Shayari I made a little change to it.
मोहब्बत-ऐ-यार की खुमारी कम नही होती..
अश्क बहते नही अब... आँखें नम नही होती..
पास होकर भी पास नहीं मेरा हमसफ़र, मोहब्बत कम नही होती..
काश आ जाये तरस आज खुदा को, की दूरी कम नही होती...
बारीश दिल जला जाती है, कि बूंदे कम नही होती..
दिल मे बाद आती है मगर, आँखें नम नही होती..
आईने के सामने भी, आंसू मे शरम नही होती..
चेहरा पद लो अब मेरा, की आँखें नम नही होती..
दर्द-ये-दिल कीससे कहूं मैं, धड़कन कम नही होती...
रो पडती है रूह मेरी, पर आँखें नम नही होती..
बस आँखें हैं की कमबख्त नम नही होती॥
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एक कागज़ पे एक din तुम ने
तराशे थे कुछ हसीं नक्शे
बनायी थीं रंग बिरंगी तस्वीरें
हंसती-बोलती, मुस्कुराती हुईं
खींचीं थी चांद रेखाएं
एक छोटे से घर को जाती हुईं
आज वोह कागज़ मुझे पूछता है
"मेरे वजूद का मतलब क्या है ?"
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आज फिर तुझे याद कीया जाये,
आँखों को अश्कबार कीया जाये..
भूली बातों को याद करके,
बिखरे ज़खमो को सीया जाये..
नही देता कोई ता-उम्र साथ,
किसको सफ़र-ए-हमराह कीया जाये..
हमने वफा की है बहुत,
अब बेवाफाई का इल्जाम लीया जाये..
उजालों के लुत्फ़ उठाये हैं बहुत,
अब अंधेरों का साथ दीया जाये..
बी-रोनक हो गई है हर महफ़िल,
क्यों ना अब गुमनाम जीया जाये