Wednesday, August 15, 2007

बेचैनियाँ

बेचैनियाँ समेट के सारे जहाँ की,
After collecting all the problems (restlessness) of the world
जब कुछ ना बन सका तो मेरा दिल बना दिया.
When nothing could be made he made my heart


Credit for the Ghazal below goes to "Priya"
with full respect to her and her Shayari I made a little change to it.

मोहब्बत-ऐ-यार की खुमारी कम नही होती..
अश्क बहते नही अब... आँखें नम नही होती..

पास होकर भी पास नहीं मेरा हमसफ़र, मोहब्बत कम नही होती..
काश आ जाये तरस आज खुदा को, की दूरी कम नही होती...

बारीश दिल जला जाती है, कि बूंदे कम नही होती..
दिल मे बाद आती है मगर, आँखें नम नही होती..

आईने के सामने भी, आंसू मे शरम नही होती..
चेहरा पद लो अब मेरा, की आँखें नम नही होती..

दर्द-ये-दिल कीससे कहूं मैं, धड़कन कम नही होती...
रो पडती है रूह मेरी, पर आँखें नम नही होती..

बस आँखें हैं की कमबख्त नम नही होती॥
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एक कागज़ पे एक din तुम ने
तराशे थे कुछ हसीं नक्शे

बनायी थीं रंग बिरंगी तस्वीरें
हंसती-बोलती, मुस्कुराती हुईं

खींचीं थी चांद रेखाएं
एक छोटे से घर को जाती हुईं

आज वोह कागज़ मुझे पूछता है
"मेरे वजूद का मतलब क्या है ?"
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आज फिर तुझे याद कीया जाये,
आँखों को अश्कबार कीया जाये..

भूली बातों को याद करके,
बिखरे ज़खमो को सीया जाये..

नही देता कोई ता-उम्र साथ,
किसको सफ़र-ए-हमराह कीया जाये..

हमने वफा की है बहुत,
अब बेवाफाई का इल्जाम लीया जाये..

उजालों के लुत्फ़ उठाये हैं बहुत,
अब अंधेरों का साथ दीया जाये..

बी-रोनक हो गई है हर महफ़िल,
क्यों ना अब गुमनाम जीया जाये

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